इन खुदगर्ज शहरों के दस्तूर कुछ ऐसे ही होते हैं यारों...
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चंद दिनों की खामोशी में यहाँ लोग भुला दिए जाते हैं....
दिल से ज़बा पर आ जाने वाली कुछ वो बातें, जिन्हें दिल ही महसूस कर पता है, उसी पर आधारित है यह ब्लॉग, प्रेरणा है मेरी प्रेमिका ..
Sunday, September 20, 2015
दस्तूर
Saturday, September 19, 2015
ख़ैरात
हक़ से दो तो तेरी नफरत भी कुबूल है हमें , खैरात में तो हम तुम्हारी मोहब्बत भी न लें!!!
Tuesday, May 12, 2015
विरासत
चैन रातों को रहत नही मुझे फिर भी उससे शिकयत नही मै अपना हक़ उस पर जटाउ कैसे वो मेरी चाहत है विरासत नही
Friday, April 17, 2015
तन्हाई
कितनी अजीब है मेरे अन्दर की तन्हाई भी हजारो अपने दोस्त है मगर अपने तुम ही हो
Thursday, April 16, 2015
ठोकर
इतनी ठोकरे देने के लिए शुक्रिया, ए-
ज़िन्दगी. चलने का न सही
सम्भलने का हुनर तो आ गया....!
जिन्दगी
एय मेरी जिन्दगी यूँ मुझसे दगा ना कर,
उसे भुला कर जिन्दा रहू दुआ ना कर,
कोई उसे देखता हैं तो होती हैं तकलीफ,
एय हवा तू भी उसे छुवा ना कर .....
Wednesday, April 15, 2015
बेमौसम बारिश
कितने अजब रंग समेटे है ये बेमौसम बारिश खुद मे...
अमीर पकौड़े खाने की सोच रहा है...
तो किसान जहर...!!!