Friday, April 17, 2015

तन्हाई

कितनी अजीब है मेरे अन्दर की तन्हाई भी                                                                    हजारो अपने दोस्त है मगर अपने तुम ही हो

Thursday, April 16, 2015

आँसु

मेरे आँसुओं की नीलमी में शामिल हैं ये ज़माना।
शायद किसी बोली पर बोल दे फ़साना हमारा।।

रिश्ते

"ज़रा सम्भाल कर रखियेगा इन्हें....
ये रिश्ते हैं...
कपड़े नहीं,
कि रफ़ू हो जायें...!"

ठोकर

इतनी ठोकरे देने के लिए शुक्रिया, ए-
ज़िन्दगी. चलने का न सही
सम्भलने का हुनर तो आ गया....!

जिन्दगी

एय मेरी जिन्दगी यूँ मुझसे दगा ना कर,
उसे भुला कर जिन्दा रहू दुआ ना कर,
कोई उसे देखता हैं तो होती हैं तकलीफ,
एय हवा तू भी उसे छुवा ना कर .....

Wednesday, April 15, 2015

बेमौसम बारिश

कितने अजब रंग समेटे है ये बेमौसम बारिश खुद मे...

अमीर पकौड़े खाने की सोच रहा है...

तो किसान जहर...!!!

आशीक

ये "आशीकों" का शहर है जनाब, 
यहाँ सवेरा सुरज से नही किसी के दिदार से होता है !