Tuesday, May 12, 2015

सज़ा

दौर वो आया है
क़ातिल की सज़ा कोई नहीं

हर सज़ा उसके लिए है
जिसकी ख़ता कोई नहीं

पसंद

किसी को अपनी पसंद बनाना कोई बडी बात नहीं...
पर किसी की पसंद बन जाना बहुत बडी बात है.

शायरी

शायरी का बादशाह हुं और कलम मेरी रानी
अल्फाज़ मेरे गुलाम है बाकी रब की महेरबानी

विरासत

चैन रातों को रहत नही मुझे फिर भी उससे शिकयत नही मै  अपना हक़ उस पर जटाउ कैसे वो मेरी चाहत है विरासत नही

इश्क़

इश्क़ वो नहीं जो तुझे मेरा कर दे,
इश्क़ वो है जो तुझे किसी और का ना होने
दे ।